अज़ा ए शह को ही बस अपना हम सफर रखना
नजफ़ से हो जो शुरू ऐसी रह गुज़र रखना
सलाम करना शहीदों को और असीरों को
सफर में अपने क़दम तुम जिधर जिधर रखना
सफर हो हुज्जते आखिर के साथ में अपना
इलाही मेरी दुआओं में वो असर रखना
सना जो करना हो अब्बास की तो याद रहे
तुम अपने ज़ेर भी अशआर में ज़बर रखना
हो जब भी ज़िक्र कहीं प्यास का मुसीबत का
तो खुल के रोने रुलाने में ना कसर रखना
सकीना कहती थी जब शाहे दीं चले रन को
हुई जो शाम तो बाबा मेरी खबर रखना
कहा ये शह ने सकीना कटेगा सर मेरा
पड़ा मिले मेरा लाशा तो अपना सर रखना
जलेगा आग से दामन तेरा मेरी दिलबर
जो छीने बालियाँ कोई तो तुम सबर रखना
ज़ुहैर तुमको ज़माना अगर सताने लगे
असीरे शाम की ग़ुरबत पा भी नज़र रखना