Nabi Ke Bagh Ka Gul Pehla Mehka Hai Zamane Main

कमी कुछ है अभी बाक़ी उन्हें दिल से बुलाने में
नहीं है देर कुछ भी आखरी हैदर के आने में

हमे तो पाँच बारह और बहत्तर देके भेजा है
तुम्हारे पास भी कोई सहारा है ज़माने में

नबी आये ज़मीं पर फिर अली ओ फातिमा ज़हरा
वसीला तो खुदा ने भी लिया खुदको दिखाने में

जो अब्तर कह रहे थे खुद ही अब्तर हो गए जब से
नबी के बाग़ का गुल पहला महका है ज़माने में

बराबर कैसे कहते हो अली को और तीनो से
फ़ज़ीलत जंग लड़ने में है या फिर भाग जाने में

न जाने क्यों मुसलमानों को ये इक़रार भारी है
रज़ि अल्लाह थे शामिल दरे ज़ेहरा जलाने में

Noke Qalam Se Kaam Liya Hai Husaam Ka

इसमें निहा है लुत्फ़ खुदा के कलाम का
है ज़िक्र जो लबो पे इमाम ए अनाम का

क्यों ना हसन के हुस्न पा यूसुफ निसार हों
दुनिया में सारा हुस्न है इनके ही नाम का

मौला हसन की आमदे पुरनूर के लिए
जश्ने विला सजा है बड़ी धूम धाम का

पहले इमाम बाद में क़ुरआन आएगा
क्या खूब सिलसिला है ये माहे सियाम का

मोजिज़ नुमा की सुल्ह भी मोजिज़ नुमा हुई
नोके क़लम से काम लिया है हुसाम का

सर तक उतर गया पा ना तन को खबर हुई
कितना करीम वार था सुल्हे इमाम का

मंसूबे सब उलट दिया सिब्ते रसूल ने
जीना हराम कर दिया नस्ले हराम का

जबसे ज़ुहैर तुमने सुनाई है मन्क़बत
चेहरा खिला हुआ है हर एक खासो आम का

Hai Jashn e Wiladat Imam e Hasan a.s. Ka

ये आमद का चर्चा है किस गुल बदन का
जो गुलज़ार महका रसूले ज़मन का

वो शबनम की बूंदों का कलियों से कहना
के चिड़ियें सुनाती हैं किस का तराना
है फखरे जिना आज मौसम चमन का
ये आमद का चर्चा है किस गुल बदन का

ये गुल जो खिला तो नबी मुस्कुराए
फरिश्तों ने आकर क़सीदे सुनाए
क्यों अब्तर सा चेहरा है शेख ए ज़मन का
जो गुलज़ार महका रसूले ज़मन का

हर एक सिम्त है ग़ुल जो सल्ले अला का
ये गुलशन में जलसा जो है बुल बलों का
है जश्न ए विलादत इमाम ए हसन का
जो गुलज़ार महका रसूले ज़मन का

इमाम ए हसन की जो आमद हुई है
फ़िज़ाओं में कौसर की खुशबू घुली है
हसीं है नज़ारा ही धरती गगन का
जो गुलज़ार महका रसूले ज़मन का

मिली नौकरी है दरे सय्यदा की
लबो पर सना है मेरे मुज्तबा की
लो देखो मुक़द्दर मेरे फ़िक्रों फन का
जो गुलज़ार महका रसूले ज़मन का

वो मोमिन कहाँ गर कोई हो शराबी
सहाबी का क़ातिल हो वो भी सहाबी
ये मेयार हो जिसके चालो चलन का
है दुश्मन वो ही तो इमाम ए हसन का

लो दावा मोहब्बत का प्यारे नबी से
मगर दिल से दुश्मन भी मौला अली के
है सूरत भी काली सिला काले मन का
है दुश्मन वो ही तो इमाम ए हसन का

है अज्रे रिसालत क़सीदा तुम्हारा
ज़ुहैर इसने उन सब का चेहरा उतारा
जो मुनकिर हुआ है दर ए पंज ए तन का
है दुश्मन वो ही तो इमाम ए हसन का

Zikr e Haider ko aam karte hain

हम जो ज़िक्रे इमाम करते हैं
क़द से ऊँचा ये काम करते हैं

ज़िकरे मौला का फैज़ तो देखो
सिन रसीदा सलाम करते हैं

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क़द से ऊँचा वो काम करते हैं
जो भी ज़िक्रे इमाम करते हैं

उनका सब एहतिराम करते हैं
जो सिना से कलाम करते हैं

दार पर जा के मीसमे तम्मार
ज़िक्रे हैदर को आम करते हैं

आने वाले हैं ग़ैब से मौला
क्या कोई इंतज़ाम करते हैं

मर्सिया नोहा मन्क़बत खानी
आम शह का पयाम करते हैं

नारा हैदर का हम लगा के ज़ुहैर
रुख़ पे मुनकिर के शाम करते हैं

Phool Masle Ja Rahe Hain Baghban Parde Main Hai

ना ज़मीं परदे में है ना आसमां परदे में है
फिर भी क्यों लगता है जैसे के जहाँ परदे में है

या इलाही ग़ैब की मुद्दत को अब तो ख़त्म कर
फूल मसले जा रहे हैं बाग़बां परदे में है

किस क़दर बख़शे हैं रब ने देखिए अपने सिफ़ात
आशिकों से रु बा रु भी और निहां परदे में है

उगता सूरज रोज़ देता है मिसाल इनकी हमें
नूर है फैला जहाँ में जिस्मों जां परदे में है

साज़िशों में घिर ना जाये मातमी बच्चे कहीं
ज़हर सुलगा है फ़िज़ा में और धुआं परदे में है

क्या कहें किस से कहें कैसे कहें हद पार है
जिसको रहना चाहिए अब वो कहाँ परदे में है

अब जो मिदहत है तो बस शोरो गुलूकारी से है
शायरी तो आज कल सारी मियां परदे में है

जो अता मुझको हुआ वो लिख दिया मैंने ज़ुहैर
है हकीकत सामने वहमों गुमां परदे में है

Waris e Haider e Karrar Hai Aane Wala

मूनिसो रहबरों ग़म खार है आने वाला
हम ग़रीबों का मददगार है आने वाला

जिसको अल्लाह ने ग़ैबत में छुपा रख्खा है
दीने हक़ का वो तरफदार है आने वाला

शक्लो सूरत में शबाहत में नबी जैसा है
वारिसे हैदर ए कर्रार है आने वाला

वो जो आयेगें तो इस दिल को क़रार आएगा
कलबो जां जाने दिले ज़ार है आने वाला

ज़ुल्म की नींद उड़ा रख्खी है जिसने अब तक
चौदा सदियों का वो इनकार है आने वाला

क़ब्र में सो रहा हर ज़ुल्म का बानी सुन ले
लेके हैदर की वो तलवार है आने वाला

मैंने महफ़िल में सुनाई जो ज़ुहैर उनकी सना
खुद ही कहने लगे अशआर है आने वाला

लेगा हर दौर के ज़ालिम सो वो ही आके खबर
कह दो तीनो से ये एक बार है आने वाला

Khwab Main Haidare Karrar Nazar Aate hain

इश्क़े हैदर से जो सरशार नज़र आते हैं
बस वो ही साहिबे किरदार नज़र आते हैं

सुनने आते हैं फ़ज़ाइल जो मेरे मौला के
खुल्द के सब ही खरीदार नज़र आते हैं

सीखे क़ुरआन से मिदहत का सलीक़ा दुनिया
जिसके हर लफ्ज़ में अशआर नज़र आते हैं

सुनके मौला के फ़ज़ाइल जो नहीं बोलते हैं
ग़ासिबे हक़ के तरफ़दार नज़र आते हैं

जशने मौला में ज़रा वक़्त से आया भी करें
वक़्त के जो भी गिरफ्तार नज़र आते हैं

है ये ही ज़िक्र फ़क़त जिसने सवारा है हमें
वरना हर कोम में फनकार नज़र आते हैं

खुश नसीबी है हमे फ़र्शे मसर्रत पे ज़ुहैर
जितने चेहरे हैं वो गुलज़ार नज़र आते हैं

Charag Leke Kahan Samne Hawa ke Chale

खुदा का दीन हमें मुस्तफा सिखा के चले
हैं मेरे बाद अली सबको ये बता के चले

अली के बाद हसन और हसन के बाद हुसैन
गला कटा के जो दीने खुदा बचा के चले

ए कर्बला हो मुबारक तुझे नसीब तेरा
लहू से अपने बहत्तर तुझे सजा के चले

ज़माना जान ले मरते नहीं शहीद कभी
कलामे पाक को नेज़ों से हम सुना के चले

ये फ़ौज क्या है ज़मी आसमा उलट दूँगा
सग़ीर झूले से ये कह के मुस्कुरा के चले

झुका ना पाए थे सर तो हुसैन का लेकिन
यज़ीद वाले सिना पर उसे उठा के चले

ज़ईफ़ होके भी नुसरत में शाहे दीं की हबीब
है दोस्ती का जो मेयार वो दिखा के चले

सवाले बैयते फ़ासिक़ पा ये अजल ने कहा
चराग़ लेके कहाँ सामने हवा के चले

ज़ुहैर बैअते फ़ासिक़ के घर अँधेरे हैं
हुसैन जबसे चराग़ों की लौ बुझा के चले

Sab Kafiron Ka Raaj Kuwar Tha Muaviya

सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया
सुफ़यानियत की जान जिगर था मुआविया
जैसा था खून वैसा असर था मुआविया
बुग़ज़ों हसद फरेब था शर था मुआविया
दीने खुदा को सिर्फ ज़रर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

कुछ लोग कह रहे है के था कातिबे वही
था काफिरों का दहर में सरदार भी यही
काफिर जो था रसूल की बेसत के बाद भी
उस पर सहाबियों का ये क़ातिल था शेख जी
दुश्मन नबी का शामो सहर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

जो आशिक़े नबी हैं वोहि मुस्कुराएँगे
मोमिन बने जो फिरते हैं वो सुन ना पाएँगे
इनका हसब नसब भी तो हम ही बताएँगे
जो कारनामे माँ ने किए छुप ना पाएँगे
हमजा की क़ातिला का पिसर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

कब कब लड़ी हैं जंगे भला और कहाँ कहाँ
जब जंग थी बदर में तो सरदार थे कहाँ
हिजरत हुई मदीने की हब्शा की थे कहाँ
मेहनत मशक़्क़तों को ज़रा कीजिये अयाँ
कुफ्फार की नबी से सिपर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

इतना बताएं साथ नबी की कहीं पा थे
सुल्हे हुदैबिया में ना जंगे उहद में थे
गर थे कहीं तो मद्दे मुक़ाबिल सदा रहे
मुनकिर सदा वही के रिसालत के ये रहे
थे मुस्तफा इधर तो उधर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

कुफ्फार से नबी ने जूं ही जंग जीत ली
फरमान था नबी का मुआफी सभी को दी
हम फ़ज़्ले किर्दगार हैं क़ेहरे खुदा नहीं
पीछा ना करना उसका अगर भागा हो कोई
मक्का नबी ने जीता किधर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

कलमा पड़ा था जान बचाने के वास्ते
उम्मत का माल लूट के खाने के वास्ते
बदनाम दीने हक़ को कराने के वास्ते
उम्मत को दर बदर ही फिराने के वास्ते
पढ़ के भी कलमा तंग नज़र था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

दिल में ना खौफ रब का ना इज़्ज़त रसूल की
हर बात जिसने प्यारे पयम्बर की छोड़ दी
बुध को जुमा पढ़ाया शरीयत ही मोड़ दी
उम्मत नबी की इसने ही फ़िरक़ों में तोड़ दी
इस पर भी तो सहाबी मगर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

कहते हैं शेख खुल्द का जीना ये ही तो है
बुग़ज़े अली का पहला नमूना ये ही तो है
दो ज़क को जाने वाला सफीना ये ही तो है
क़ातिल जो है अली का कमीना ये ही तो है
जिसका यज़ीद फल वो शजर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

आले नबी के बुग्ज़ का जलता हुआ दिया
हो कर फ़क़ीरे शाम परेशान ही रहा
बुग़ज़े अली वली में ये जलता रहा सदा
सुल्हे हसन ने ऐसा गिरफ्तार कर लिया
हाकिम बना हुआ था सिफर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

सुल्हे हसन को तोड़ के जो ख्वार हो गया
अपनी जगह यज़ीद का ऐलान कर गया
सिब्ते नबी के क़त्ल का सामान कर गया
बिन्ते अशअस को इसने ही दो ज़क दिला दिया
मरकज़ जो लानतों का वो घर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

मुझ पे अता है मौला हसन की ये बा खुदा
तारीख है जो मैंने सजा कर सुना दिया
बस गुफ्तुगू सजा के जो मुझसे लिखा गया
मैंने ज़ुहैर उसको मुखम्मस में लिख दिया
सुन कर हलाल ज़ादों का चेहरा ही खिल गया
मैंने लिखा था शर वो मगर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

Sakina Aapki Midhat Main Sare Hazir Hain

क़ुरआने इश्क़ो मवद्दत में जितने गोहर हैं
सकीना आपकी मिदहत को सारे हाज़िर हैं

जहान भर में जहाँ आयतें उतरती हैं
उसी घराने के दिलबर की आप दुख्तर हैं

रसूले पाक के दिलबर तुम्हारे बाबा हैं
रबाब माँ हैं तेरी भाई नन्हें असग़र हैं

हसन हुसैन नबी फातिमा अली मौला
जहान भर में ये ही पांच सबसे बेहतर हैं

इमाम बारा हैं मासूम हैं फ़क़त चौदा
शहीदे करबो बला कुल के कुल बहत्तर हैं

सजा है दीने खुदा बे बहा नगीनों से
चमक रहे हैं जो इसमें वो कुल बहत्तर हैं

ज़िया में सारे बहत्तर ही सबसे आला हैं
मगर सग़ीर शहे दीं के सबसे अकबर हैं

जलाया जिसने मुसल्ला इमाम का मेरे
उसी की आल के काँधे पे आज बिस्तर हैं

ज़ुहैर हमको ज़माना मिटा नहीं सकता
नबी को हक़ ने जो बक्शा है हम वो कौसर हैं