Jafar Hai Naam Aapko Sadiq Laqb Mila

हर जशने सादिक़ ऐन में ये भी अजब मिला
जो शख्स भी मिला वो हमें बा अदब मिला

उल्फत खुदा की दीन भी दुनिया का इल्म भी
बाक़िर के लाल आपके दर से ये सब मिला

इल्मो अमल में आप का सानी कोई नहीं
जाफर है नाम आपको सादिक़ लक़ब मिला

इस दर पे मांगने की ज़रूरत नहीं पड़ी
जो आ गया यहाँ पे उसे बे तलब मिला

मुनकिर जो इनके दर का मिले उस से पूछना
कितना मिला कहाँ से मिला और कब मिला

मिदहत ज़ुहैर इनकी बराए सवाब कर
सदक़ा है इनके दर का तुम्हें खुश लक़ब मिला

Ya Ali Ya Ali Ya Ali Ya Ali – Khaybar

या अली या अली या अली या अली
या अली या अली या अली या अली
या अली या अली या अली या अली

मेरा मौला अली मेरा आक़ा अली
आसमानो ज़मीं पर हुकूमत तेरी
दिन तेरी रौशनी रात मर्ज़ी तेरी
हर सितारों ने की है तेरी नौकरी
तेर सदक़े में नबियों की मुश्किल टली
या अली या अली या अली या अली

मैंने खैबर से जब पूँछा ये माजरा
जंग में क्या हुआ कुछ बता तो ज़रा
जब ना थे मुर्तज़ा तो लड़ा कौन था
इतने दिन क्यों लगे क्यों फतह ना हुआ
किसको खैबर में अहमद ने आवाज़ दी
या अली या अली या अली या अली

बोला खैबर के अल मुख़्तसर यूँ हुआ
जंगे का सारा नक़्शा था पलटा हुआ
लड़ने मरहब से कोई भी जाता ना था
लड़ने जाता था कोई तो टिकता ना था
एक भी तो ना था सब में कोई जरी
या अली या अली या अली या अली

सूरमा सब बने मात खाते रहे
झंडे जाते रहे डंडे आते रहे
मात खाते रहे मुँह छुपाते रहे
अपनी ना कामियां सब सुनाते रहे
मर्दे मैदाँ तो उनमे ना निकला कोई
या अली या अली या अली या अली

कितने असहाब थे सब बड़े से बड़े
सबसे आगे थे वो जो ससुर भी हुए
लड़ने वो भी गए थे बड़ी शान से
पहुँचे थे शान से पलटे हैरान से
बे ज़ुबाँ को सुनाने लगे जो खरी
या अली या अली या अली या अली

कितने हज़रात का आना जाना हुआ
ख़त्म हर एक का हर बहाना हुआ
दिन गुज़रते रहे एक ज़माना हुआ
पर खुदा ने था कुछ और ठाना हुआ
आए जिब्रील ले कर वहीं पर वही
या अली या अली या अली या अली

बोले अहमद अलम अब मैं दूँगा उसे
गैर ए फर्रार हो जीत हासिल करे
कितने अलक़ाब थे जो नबी ने कहे
एक लक़ब में भी हमसर ना छोटे बड़े
दिन वो ढलने लगा रात होने लगी
या अली या अली या अली या अली

उफ़ अलम की वो चाहत थी असहाब में
नींद सबकी उडी थी अलम के लियें
नींद कैसी खुली आँखों से खाब में
सोचते थे अलम कल मिलेगा हमें
सोचते सोचते ही सुबह हो गयी
या अली या अली या अली या अली

दिन जो निकला अज़ाने सहर जो हुई
तेज़ धड़कन जो थी तेज़ तर हो गयीं
हम को देंगे अलम बस गुमां था यही
जिस से डरते थे आखिर हुआ फिर वही
मुस्तफा ने पढ़ी फिर जो नादे अली
या अली या अली या अली या अली

वो सदा सुन के बे साख्ता आ गए
जंग लड़ने को मुश्किल कुशा आ गए
जबके बीमार थे मुर्तज़ा आ गए
थे मदीने में पेशे नबी आ गए
गर बुलाये नबी क्यों ना आये वसी
या अली या अली या अली या अली

नाम हैदर का जूं ही नबी ने लिया
जाने कितनो का चेहरा ही मुरझा गया
दिल की हर एक तमन्ना का खूं बह गया
जागना रात भर सब अकारत गया
थी अलम की जो चाहत यूँ ही रह गयी
या अली या अली या अली या अली

लड़ने मरहब से तनहा अली जो गए
सीना पत्थर का चीरा अलम के लिए
बोले हिम्मत हो जिसमें वो आके लड़े
जितने असहाब थे देखते रह गए
एक मरहब की दो लाश कैसे हुई
या अली या अली या अली या अली

एक इशारा अली ने जो दर को किया
दर जो चालीस लोगों से हिलता ना था
ए ज़ुहैर उस इशारे का था मोजिज़ा
दर वो दस्ते दरे इल्म पर आ गया
फिर तो माले गनीमत था और फ़ौज थी
या अली या अली या अली या अली

Matam Ke Roz Khatm Hue Eid Aa Gayi – Eid-e-Zehra

मातम के रोज़ ख़त्म हुए ईद आ गयी
हर मातमी के चेहरे पे मुस्कान छा गयी

तारीकयों से कह दो कहीं और जा बसें
सज्जाद मुस्कुरा दिए रौनक सी आ गयी

लहजे में मुर्तज़ा के जो खुत्बा सुना गयी
फ़र्शे अज़ा यज़ीद के घर में बिछा गयी

बेटी अली की क़स्रे खलीफा गिरा गयी
औक़ात क्या है ज़ुल्म की सबको दिखा गयी

शोले दबा के शाम के ज़िन्दाँ जो आयी थी
क़स्रे यज़ीद सारा का सारा जला गयी

नारा अली का नस्लों का है आइना ए शेख
माथे की एक शिकन कई सदियां दिखा गयी

अजदाद जिनके ग़ार में रोए थे दोस्तों
ज़हरा की ईद आई तो उनको रुला गयी

अम्मा पुकारता है ज़माना उसे ज़ुहैर
जंगे जमल में लड़ने अली से जो आ गयी

Amal Se Kab Wahan Kirdaar Samjha Ja raha hai

अमल से कब वहाँ किरदार समझा जा रहा है
रहज़नो को जहाँ सरदार समझा जा रहा है

नहीं मालूम जिसका हुर है या वो हुरमुला है
भला कैसे वो मातमदार समझा जा रहा है

खुद अपनी कोम को जाहिल दिखा कर सबके आगे
खुद अपने आप को हुशियार समझा जा रहा है

ज़रा सी मालो दौलत और इनकी चापलूसी
ख़याल ए खाम भी हथियार समझा जा रहा है

मेरे माबूद आखिर कब तमाशा ख़त्म होगा
अज़ादारी है क्यों त्योहार समझा जा रहा है

तमाशा करने वालों को खबर दे दो ज़ुहैर अब
ये ना समझें उन्हें दम दार समझा जा रहा है

Yakko tanha jo khada hai kaun ye Sardaar hai?

यक्को तनहा जो खड़ा है कौन ये सरदार है
ज़ालिमों का दिल हिलाती किसकी ये यलगार है

अज़्म इसमें कर्बला का हौसला शब्बीर का
ये अली का शेर है जो बर सर-ए-पैकार है

ओ ज़माने के यज़ीदों है अली इब्ने अली
नाम इसका खामनाई शाह का मातमदार है

बुग़्ज़-ए-हैदर का असर है छुप नहीं सकता कभी
फिर सऊदी कह रहा है जंग-ए-इक़्तेदार है

हैं पचासों मुल्क जिनके हुक्मरां हैं कलमा गो
ज़ुल्म का हामी है जो भी दीन का गद्दार है

दुश्मन-ए-आले नबी जो तू नहीं तो वार कर
चूड़ियां हैं हाथ में या मोम की तलवार है

ज़ुल्म के आगे तो हमने सर झुकाया ही नहीं
कर्बला से आज तक इंकार था इंकार है

लो बहाया जा रहा है फिर से खूने बे-खता
बारिशें अब खून की होंगी यही आसार है

मैं तो अपने मुल्क से भी यही कहता हूं जुहैर
जिस का साया सर पे है वो रेत की दीवार है

Phir se Shaitaan ne Iraan ko Dhamkaya Hai

लो मियां बैअत ए फासिक़ का सवाल आया है
फिर से शैतान ने ईरान को धमकाया है

अहले बातिल के लिए सर नहीं झुकता अपना
शह का फरमान है ये हमने तो दोहराया है

देख लो कौन हैं नारी तो अकेला है कौन
किस के काँधे पा अलम हक़ का नज़र आया है

अहले बातिल के लिए सर नहीं झुकता अपना
शह का फरमान है ये हमने तो दोहराया है

ग़ासिब ए हक़ के तरफ़दार हैं दुनिया वाले
पर जो ग़ासिब है वो ईरान से घबराया है

हाज क़ासिम भी नहीं और ना हसन नसरुल्लाह
मुन्तज़िर जिसके थे वो वक़्त तो अब आया है

धमकियाँ देता है शैतान का फ़रज़न्द हमें
खात्मा अपना ये खुद उसने ही बुलवाया है

हम दिफ़ा करते हैं हमला नहीं करते हैं कभी
हमला मजबूरी है वो घर में ही घुस आया है

Ali Maula Ali Maula Ali Maula Ali Maula

अली मौला अली मौला अली मौला अली मौला
ग़दीरे खुम का सरमाया अली मौला अली मौला

पलट आएं जो आगे हैं जो पीछे हैं वो आ जाएँ
सवारी पर जो बैठे हैं ज़रा नीचे उतर आएँ
बने मिम्बर कजावो का अली मौला अली मौला
अली मौला अली मौला अली मौला अली मौला

करो तो याद वो प्यारे नबी का आखरी हज था
सुलगती रेत नीचे थी सवा नेज़े पे सूरज था
बताया फिर नबी ने था अली मौला अली मौला
अली मौला अली मौला अली मौला अली मौला

कहा जिब्रील ने आकर खुदा का हुक्म है इस दम
नबी सब से वो ही कह दें के जो पहुँचा चुके हैं हम
नबी ने कह दिया सबका अली मौला अली मौला
अली मौला अली मौला अली मौला अली मौला

रुकाया हाजियों को जब नबी ने खुम के मैदां में
सुना फिर आखरी खुत्बा सभी ने खुम के मैदां में
सरे मिम्बर था ये नारा अली मौला अली मौला
अली मौला अली मौला अली मौला अली मौला

ख़ुशी से बुज़ारो सलमान और क़म्बर जो झूमे थे
कहा था शेख ने बख्खिन अली के हाथ चूमे थे
मगर चेहरा था मुरझाया अली मौला अली मौला
अली मौला अली मौला अली मौला अली मौला

खुदा का क़हर भी आया किसी के वास्ते खुम में
था मुनकिर जो विलायत का उसी के वास्ते खुम में
गिरा पत्थर तो ये बोला अली मौला अली मौला
अली मौला अली मौला अली मौला अली मौला

Ghadeer-e-Khum Sajaya Hai Nabi Ne

ग़दीरे खुम सजाया है नबी ने
नया मिम्बर मंगाया है नबी ने

जो आगे थे उन्हें पीछे बुलाकर
हर एक हाजी रुकाया है नबी ने

बना मिम्बर कजावो का तो उसपर
वसी अपना बुलाया है नबी ने

है मिम्बर पर नबी हाथों पा हैदर
बहुत ऊँचा उठाया है नबी ने

अली मौला हैं सबके ये बता कर
बुलंदी से दिखाया है नबी ने

जो मुनकिर थे विलायत के वो बोले
हमारा दिल दुखाया है नबी ने

गिरा पत्थर जो हारिस पर ये कहकर
पयामे हक़ सुनाया है नबी ने

अली को हम वली कैसे ना माने
हमे कलमा सिखाया है नबी ने

कहाँ रोना है हसना है कहाँ पर
हर एक लम्हा बताया है नबी ने

ग़दीरे खुम ज़ुहैर अपनी ज़बां में
सुनाने को बुलाया है नबी ने

Nabi Ke Bagh Ka Gul Pehla Mehka Hai Zamane Main

कमी कुछ है अभी बाक़ी उन्हें दिल से बुलाने में
नहीं है देर कुछ भी आखरी हैदर के आने में

हमे तो पाँच बारह और बहत्तर देके भेजा है
तुम्हारे पास भी कोई सहारा है ज़माने में

नबी आये ज़मीं पर फिर अली ओ फातिमा ज़हरा
वसीला तो खुदा ने भी लिया खुदको दिखाने में

जो अब्तर कह रहे थे खुद ही अब्तर हो गए जब से
नबी के बाग़ का गुल पहला महका है ज़माने में

बराबर कैसे कहते हो अली को और तीनो से
फ़ज़ीलत जंग लड़ने में है या फिर भाग जाने में

न जाने क्यों मुसलमानों को ये इक़रार भारी है
रज़ि अल्लाह थे शामिल दरे ज़ेहरा जलाने में

Noke Qalam Se Kaam Liya Hai Husaam Ka

इसमें निहा है लुत्फ़ खुदा के कलाम का
है ज़िक्र जो लबो पे इमाम ए अनाम का

क्यों ना हसन के हुस्न पा यूसुफ निसार हों
दुनिया में सारा हुस्न है इनके ही नाम का

मौला हसन की आमदे पुरनूर के लिए
जश्ने विला सजा है बड़ी धूम धाम का

पहले इमाम बाद में क़ुरआन आएगा
क्या खूब सिलसिला है ये माहे सियाम का

मोजिज़ नुमा की सुल्ह भी मोजिज़ नुमा हुई
नोके क़लम से काम लिया है हुसाम का

सर तक उतर गया पा ना तन को खबर हुई
कितना करीम वार था सुल्हे इमाम का

मंसूबे सब उलट दिया सिब्ते रसूल ने
जीना हराम कर दिया नस्ले हराम का

जबसे ज़ुहैर तुमने सुनाई है मन्क़बत
चेहरा खिला हुआ है हर एक खासो आम का