Khwab Main Haidare Karrar Nazar Aate hain

इश्क़े हैदर से जो सरशार नज़र आते हैं
बस वो ही साहिबे किरदार नज़र आते हैं

सुनने आते हैं फ़ज़ाइल जो मेरे मौला के
खुल्द के सब ही खरीदार नज़र आते हैं

सुनके मौला के फ़ज़ाइल जो नहीं बोलते हैं
ग़ासिबे हक़ के तरफ़दार नज़र आते हैं

जशने मौला में ज़रा वक़्त से आया भी करें
वक़्त के जो भी गिरफ्तार नज़र आते हैं

है ये ही ज़िक्र फ़क़त जिसने सवारा है हमें
वरना हर कोम में फनकार नज़र आते हैं

खुश नसीबी है हमे फ़र्शे मसर्रत पे ज़ुहैर
जितने चेहरे हैं वो गुलज़ार नज़र आते हैं

Charag Leke Kahan Samne Hawa ke Chale

खुदा का दीन हमें मुस्तफा सिखा के चले
हैं मेरे बाद अली सबको ये बता के चले

अली के बाद हसन और हसन के बाद हुसैन
गला कटा के जो दीने खुदा बचा के चले

ए कर्बला हो मुबारक तुझे नसीब तेरा
लहू से अपने बहत्तर तुझे सजा के चले

ज़माना जान ले मरते नहीं शहीद कभी
कलामे पाक को नेज़ों से हम सुना के चले

ये फ़ौज क्या है ज़मी आसमा उलट दूँगा
सग़ीर झूले से ये कह के मुस्कुरा के चले

झुका ना पाए थे सर तो हुसैन का लेकिन
यज़ीद वाले सिना पर उसे उठा के चले

ज़ईफ़ होके भी नुसरत में शाहे दीं की हबीब
है दोस्ती का जो मेयार वो दिखा के चले

सवाले बैयते फ़ासिक़ पा ये अजल ने कहा
चराग़ लेके कहाँ सामने हवा के चले

ज़ुहैर बैअते फ़ासिक़ के घर अँधेरे हैं
हुसैन जबसे चराग़ों की लौ बुझा के चले

Sab Kafiron Ka Raaj Kuwar Tha Muaviya

सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया
सुफ़यानियत की जान जिगर था मुआविया
जैसा था खून वैसा असर था मुआविया
बुग़ज़ों हसद फरेब था शर था मुआविया
दीने खुदा को सिर्फ ज़रर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

कुछ लोग कह रहे है के था कातिबे वही
था काफिरों का दहर में सरदार भी यही
काफिर जो था रसूल की बेसत के बाद भी
उस पर सहाबियों का ये क़ातिल था शेख जी
दुश्मन नबी का शामो सहर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

जो आशिक़े नबी हैं वोहि मुस्कुराएँगे
मोमिन बने जो फिरते हैं वो सुन ना पाएँगे
इनका हसब नसब भी तो हम ही बताएँगे
जो कारनामे माँ ने किए छुप ना पाएँगे
हमजा की क़ातिला का पिसर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

कब कब लड़ी हैं जंगे भला और कहाँ कहाँ
जब जंग थी बदर में तो सरदार थे कहाँ
हिजरत हुई मदीने की हब्शा की थे कहाँ
मेहनत मशक़्क़तों को ज़रा कीजिये अयाँ
कुफ्फार की नबी से सिपर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

इतना बताएं साथ नबी की कहीं पा थे
सुल्हे हुदैबिया में ना जंगे उहद में थे
गर थे कहीं तो मद्दे मुक़ाबिल सदा रहे
मुनकिर सदा वही के रिसालत के ये रहे
थे मुस्तफा इधर तो उधर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

कुफ्फार से नबी ने जूं ही जंग जीत ली
फरमान था नबी का मुआफी सभी को दी
हम फ़ज़्ले किर्दगार हैं क़ेहरे खुदा नहीं
पीछा ना करना उसका अगर भागा हो कोई
मक्का नबी ने जीता किधर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

कलमा पड़ा था जान बचाने के वास्ते
उम्मत का माल लूट के खाने के वास्ते
बदनाम दीने हक़ को कराने के वास्ते
उम्मत को दर बदर ही फिराने के वास्ते
पढ़ के भी कलमा तंग नज़र था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

दिल में ना खौफ रब का ना इज़्ज़त रसूल की
हर बात जिसने प्यारे पयम्बर की छोड़ दी
बुध को जुमा पढ़ाया शरीयत ही मोड़ दी
उम्मत नबी की इसने ही फ़िरक़ों में तोड़ दी
इस पर भी तो सहाबी मगर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

कहते हैं शेख खुल्द का जीना ये ही तो है
बुग़ज़े अली का पहला नमूना ये ही तो है
दो ज़क को जाने वाला सफीना ये ही तो है
क़ातिल जो है अली का कमीना ये ही तो है
जिसका यज़ीद फल वो शजर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

आले नबी के बुग्ज़ का जलता हुआ दिया
हो कर फ़क़ीरे शाम परेशान ही रहा
बुग़ज़े अली वली में ये जलता रहा सदा
सुल्हे हसन ने ऐसा गिरफ्तार कर लिया
हाकिम बना हुआ था सिफर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

सुल्हे हसन को तोड़ के जो ख्वार हो गया
अपनी जगह यज़ीद का ऐलान कर गया
सिब्ते नबी के क़त्ल का सामान कर गया
बिन्ते अशअस को इसने ही दो ज़क दिला दिया
मरकज़ जो लानतों का वो घर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

मुझ पे अता है मौला हसन की ये बा खुदा
तारीख है जो मैंने सजा कर सुना दिया
बस गुफ्तुगू सजा के जो मुझसे लिखा गया
मैंने ज़ुहैर उसको मुखम्मस में लिख दिया
सुन कर हलाल ज़ादों का चेहरा ही खिल गया
मैंने लिखा था शर वो मगर था मुआविया
सब काफिरों का राज कुवर था मुआविया

Sakina Aapki Midhat Main Sare Hazir Hain

क़ुरआने इश्क़ो मवद्दत में जितने गोहर हैं
सकीना आपकी मिदहत को सारे हाज़िर हैं

जहान भर में जहाँ आयतें उतरती हैं
उसी घराने के दिलबर की आप दुख्तर हैं

रसूले पाक के दिलबर तुम्हारे बाबा हैं
रबाब माँ हैं तेरी भाई नन्हें असग़र हैं

हसन हुसैन नबी फातिमा अली मौला
जहान भर में ये ही पांच सबसे बेहतर हैं

इमाम बारा हैं मासूम हैं फ़क़त चौदा
शहीदे करबो बला कुल के कुल बहत्तर हैं

सजा है दीने खुदा बे बहा नगीनों से
चमक रहे हैं जो इसमें वो कुल बहत्तर हैं

ज़िया में सारे बहत्तर ही सबसे आला हैं
मगर सग़ीर शहे दीं के सबसे अकबर हैं

जलाया जिसने मुसल्ला इमाम का मेरे
उसी की आल के काँधे पे आज बिस्तर हैं

ज़ुहैर हमको ज़माना मिटा नहीं सकता
नबी को हक़ ने जो बक्शा है हम वो कौसर हैं

Labon pe Apne Sajaya hai naam Baqir ka

लबों पे अपने सजाया है नाम बाक़िर का
है मुझको नाज़ के मैं हूँ ग़ुलाम बाक़िर का

इमाम पांचवे है कर्बला के क़ैदी भी
ज़माना इस लिए भी है ग़ुलाम बाक़िर का

Khuli jo Aankh to Phele Khuda ka Ghar Dekha

ज़माना झूम रहा था जहाँ जिधर देखा
खुदा के घर में जो इमरान का पिसर देखा

रजब की तेरा को बिन्ते असद ने काबे में
अली के इश्क़ में बनते हुआ वो दर देखा

जिदार टूट रही थी खड़ी थी बिन्ते असद
ज़माने भर की किसी माँ का ये जिगर देखा

बुतों की भीड़ थी काबे में जब अली आये
ना कुछ सुनाया अली ने ना एक नज़र देखा

वसी को अपने जो लेने को मुस्तफा आये
जो खोली आँख रुखे सय्यदुल बशर देखा

जब एक जा मिले शम्सो कमर तो काबे में
ज़माने भर के खुदा थे तितर बितर देखा

उन्हीं खुदाओं की अब तक भी याद दिल में लिए
नमाज़ में भी किसी ने इधर उधर देखा

सुबह हुई तो अली थे नबी नहीं थे वहां
मुनाफिकों ने वो बिस्तर तो रात भर देखा

नबी की क़ब्र को जिस जिस ने घेर रख्खा है
उसी की आल को दुनिया में दर बदर देखा

Aaj Lazim Hai Ke Deewaar Main Dar Ho Jaye

ए खुदा जिस पा तेरी ख़ास नज़र हो जाए
संग रेज़े से वो नायाब गोहर हो जाए

आयी जो तेरा रजब हस के ये काबे ने कहा
आज लाज़िम है के दीवार मैं दर हो जाये

रास्ता हक़ को बताएगी दुआ अहमद की
हो अली जिस भी तरफ हक़ भी उधर हो जाए

जबके ईमान हलाकत के सबब लाया हो
क्या हो वो शख्स खलीफा भी अगर हो जाए

ग़ैर मुमकिन है अज़ाबों में कमी आएगी
जा के फिर दफ़्न भले चाहे जिधर हो जाए

दार से मीसमे तम्मार सदा देने लगे
ये ज़बां क्या है फ़िदा जानो जिगर हो जाए

मन्क़बत ऐसी हो मौला को पसंद आए ज़ुहैर
मेरे अलफ़ाज़ में बस इतना असर हो जाए

Daste Shabbeer pe maidan ko chala hai besheer

सिर्फ छह माह में तू कितना बड़ा है बेशीर
सर उठाए ये फलक देख रहा है बेशीर

खूब मालूम है झूला भी वो अजदर भी इसे
हुरमुला खौफ से यूँ काँप रहा है बेशीर

ए ज़मीं आसमां बस क़ल्ब पे काबू रखना
दस्ते शब्बीर पे मैदां को चला है बेशीर

लड़ने आता तो क़यामत सरे मैदान आती
मुस्कुरा कर ही अभी देख रहा है बेशीर

लाश बैयत की गिरी रन में जो आशूर के दिन
रो दिया लश्करे कुफ्फार हसा है बेशीर

कमसिनी मैं भी शरीअत के मुहाफ़िज़ हो तुम
तुम हसे हो तो ये इस्लाम बचा है बेशीर

शान में उसको ये गुलदस्ता बना लाया ज़ुहैर
तेरी मिदहत में जो कुछ इसने लिखा है बेशीर