मातम के रोज़ ख़त्म हुए ईद आ गयी
हर मातमी के चेहरे पे मुस्कान छा गयी
तारीकयों से कह दो कहीं और जा बसें
सज्जाद मुस्कुरा दिए रौनक सी आ गयी
लहजे में मुर्तज़ा के जो खुत्बा सुना गयी
फ़र्शे अज़ा यज़ीद के घर में बिछा गयी
बेटी अली की क़स्रे खलीफा गिरा गयी
औक़ात क्या है ज़ुल्म की सबको दिखा गयी
शोले दबा के शाम के ज़िन्दाँ जो आयी थी
क़स्रे यज़ीद सारा का सारा जला गयी
नारा अली का नस्लों का है आइना ए शेख
माथे की एक शिकन कई सदियां दिखा गयी
अजदाद जिनके ग़ार में रोए थे दोस्तों
ज़हरा की ईद आई तो उनको रुला गयी
अम्मा पुकारता है ज़माना उसे ज़ुहैर
जंगे जमल में लड़ने अली से जो आ गयी