Badi Bekali Hai Musibat Ke Din Hain

बड़ी बे कली है मुसीबत के दिन हैं
ए लोगों ये ज़ेहरा की रुखसत के दिन हैं

ज़माने ने ज़ेहरा को क्या दे के भेजा
हर एक कलमा गो पे ये इबरत के दिन हैं

जला दर गिराया क्या ये बात कम है
क्या इकलौती बेटी पे राहत के दिन हैं

खदीजा की लख्ते जिगर जा रही है
अली से ये ज़ेहरा की रुखसत के दिन हैं

जो खूं रोती आखों का कर ले तसव्वुर
तो हर दिल कहेगा क़यामत के दिन है

ज़ुहैर अपने आंसू ये रुकने ना देना
ये आले पयम्बर पे आफत के दिन हैं