Ya Ali Ya Ali Ya Ali Ya Ali – Khaybar

या अली या अली या अली या अली
या अली या अली या अली या अली
या अली या अली या अली या अली

मेरा मौला अली मेरा आक़ा अली
आसमानो ज़मीं पर हुकूमत तेरी
दिन तेरी रौशनी रात मर्ज़ी तेरी
हर सितारों ने की है तेरी नौकरी
तेर सदक़े में नबियों की मुश्किल टली
या अली या अली या अली या अली

मैंने खैबर से जब पूँछा ये माजरा
जंग में क्या हुआ कुछ बता तो ज़रा
जब ना थे मुर्तज़ा तो लड़ा कौन था
इतने दिन क्यों लगे क्यों फतह ना हुआ
किसको खैबर में अहमद ने आवाज़ दी
या अली या अली या अली या अली

बोला खैबर के अल मुख़्तसर यूँ हुआ
जंगे का सारा नक़्शा था पलटा हुआ
लड़ने मरहब से कोई भी जाता ना था
लड़ने जाता था कोई तो टिकता ना था
एक भी तो ना था सब में कोई जरी
या अली या अली या अली या अली

सूरमा सब बने मात खाते रहे
झंडे जाते रहे डंडे आते रहे
मात खाते रहे मुँह छुपाते रहे
अपनी ना कामियां सब सुनाते रहे
मर्दे मैदाँ तो उनमे ना निकला कोई
या अली या अली या अली या अली

कितने असहाब थे सब बड़े से बड़े
सबसे आगे थे वो जो ससुर भी हुए
लड़ने वो भी गए थे बड़ी शान से
पहुँचे थे शान से पलटे हैरान से
बे ज़ुबाँ को सुनाने लगे जो खरी
या अली या अली या अली या अली

कितने हज़रात का आना जाना हुआ
ख़त्म हर एक का हर बहाना हुआ
दिन गुज़रते रहे एक ज़माना हुआ
पर खुदा ने था कुछ और ठाना हुआ
आए जिब्रील ले कर वहीं पर वही
या अली या अली या अली या अली

बोले अहमद अलम अब मैं दूँगा उसे
गैर ए फर्रार हो जीत हासिल करे
कितने अलक़ाब थे जो नबी ने कहे
एक लक़ब में भी हमसर ना छोटे बड़े
दिन वो ढलने लगा रात होने लगी
या अली या अली या अली या अली

उफ़ अलम की वो चाहत थी असहाब में
नींद सबकी उडी थी अलम के लियें
नींद कैसी खुली आँखों से खाब में
सोचते थे अलम कल मिलेगा हमें
सोचते सोचते ही सुबह हो गयी
या अली या अली या अली या अली

दिन जो निकला अज़ाने सहर जो हुई
तेज़ धड़कन जो थी तेज़ तर हो गयीं
हम को देंगे अलम बस गुमां था यही
जिस से डरते थे आखिर हुआ फिर वही
मुस्तफा ने पढ़ी फिर जो नादे अली
या अली या अली या अली या अली

वो सदा सुन के बे साख्ता आ गए
जंग लड़ने को मुश्किल कुशा आ गए
जबके बीमार थे मुर्तज़ा आ गए
थे मदीने में पेशे नबी आ गए
गर बुलाये नबी क्यों ना आये वसी
या अली या अली या अली या अली

नाम हैदर का जूं ही नबी ने लिया
जाने कितनो का चेहरा ही मुरझा गया
दिल की हर एक तमन्ना का खूं बह गया
जागना रात भर सब अकारत गया
थी अलम की जो चाहत यूँ ही रह गयी
या अली या अली या अली या अली

लड़ने मरहब से तनहा अली जो गए
सीना पत्थर का चीरा अलम के लिए
बोले हिम्मत हो जिसमें वो आके लड़े
जितने असहाब थे देखते रह गए
एक मरहब की दो लाश कैसे हुई
या अली या अली या अली या अली

एक इशारा अली ने जो दर को किया
दर जो चालीस लोगों से हिलता ना था
ए ज़ुहैर उस इशारे का था मोजिज़ा
दर वो दस्ते दरे इल्म पर आ गया
फिर तो माले गनीमत था और फ़ौज थी
या अली या अली या अली या अली

Ghadeer-e-Khum Sajaya Hai Nabi Ne

ग़दीरे खुम सजाया है नबी ने
नया मिम्बर मंगाया है नबी ने

जो आगे थे उन्हें पीछे बुलाकर
हर एक हाजी रुकाया है नबी ने

बना मिम्बर कजावो का तो उसपर
वसी अपना बुलाया है नबी ने

है मिम्बर पर नबी हाथों पा हैदर
बहुत ऊँचा उठाया है नबी ने

अली मौला हैं सबके ये बता कर
बुलंदी से दिखाया है नबी ने

जो मुनकिर थे विलायत के वो बोले
हमारा दिल दुखाया है नबी ने

गिरा पत्थर जो हारिस पर ये कहकर
पयामे हक़ सुनाया है नबी ने

अली को हम वली कैसे ना माने
हमे कलमा सिखाया है नबी ने

कहाँ रोना है हसना है कहाँ पर
हर एक लम्हा बताया है नबी ने

ग़दीरे खुम ज़ुहैर अपनी ज़बां में
सुनाने को बुलाया है नबी ने