ज़माना झूम रहा था जहाँ जिधर देखा
खुदा के घर में जो इमरान का पिसर देखा
रजब की तेरा को बिन्ते असद ने काबे में
अली के इश्क़ में बनते हुआ वो दर देखा
जिदार टूट रही थी खड़ी थी बिन्ते असद
ज़माने भर की किसी माँ का ये जिगर देखा
बुतों की भीड़ थी काबे में जब अली आये
ना कुछ सुनाया अली ने ना एक नज़र देखा
वसी को अपने जो लेने को मुस्तफा आये
जो खोली आँख रुखे सय्यदुल बशर देखा
जब एक जा मिले शम्सो कमर तो काबे में
ज़माने भर के खुदा थे तितर बितर देखा
उन्हीं खुदाओं की अब तक भी याद दिल में लिए
नमाज़ में भी किसी ने इधर उधर देखा
सुबह हुई तो अली थे नबी नहीं थे वहां
मुनाफिकों ने वो बिस्तर तो रात भर देखा
नबी की क़ब्र को जिस जिस ने घेर रख्खा है
उसी की आल को दुनिया में दर बदर देखा