Ye Aabid Ka Sehra Duaen Bashan Ki (For Ayat)

करम पंजतन का अता पंजतन की
है आबिद का सेहरा दुआएं बशन की

दुआओं में नानी की सेहरा सुनाया
यूँ आयत के मामू ने इसको सजाया
है आबिद का सेहरा दुआएं बशन की
करम पंजतन का अता पंजतन की

था इसरार आयत का सेहरा सजा दो
ज़रा आलिया साथ में अब सुना दो
जो सेहरे में मामू ने की बात मन की
है आबिद का सेहरा दुआएं बशन की
करम पंजतन का अता पंजतन की

बने बन के दूल्हा जो आबिद चले हैं
रिदा को ये दुल्हन बनाने चले हैं
सभी दे रहे हैं दुआ अपने मन की
है आबिद का सेहरा दुआएं बशन की
करम पंजतन का अता पंजतन की

चले बनके समधी जो आरिफ तो बोले
कोई रेशमा की नज़र तो उतारे
बहु आ रही है हमारी दुल्हन की
है आबिद का सेहरा दुआएं बशन की
करम पंजतन का अता पंजतन की

है साले की शादी या बारिश के ओले
ससुर जी से अपने ये हमराज़ बोले
इधर आओ अंकल करो बात धन की
है आबिद का सेहरा दुआएं बशन की
करम पंजतन का अता पंजतन की

सजा सर पे सेहरा तो कुलसूम बोली
मेरे भाई तुमको मुबारक हो शादी
हैं बातों में ज़ाहिर ये खुशियां बहन की
है आबिद का सेहरा दुआएं बशन की
करम पंजतन का अता पंजतन की

चले बन के दूल्हा जो आबिद ये देखो
फरह ताज मेहदी की खुशियां ना पूछो
ख़ुशी इनको कितनी है तेरे लगन की
है आबिद का सेहरा दुआएं बशन की
करम पंजतन का अता पंजतन की

चचा ताए अब सब बराती बने हैं
चची ताइयों के भी चेहरे खिले हैं
चमक और ज़्यादा बढ़ी है नयन की
है आबिद का सेहरा दुआएं बशन की
करम पंजतन का अता पंजतन की

बनी तेरी समधन लो नजमी भी आई
और इक़बाल देते हैं तुमको बधाई
मुबारक हो तुमको घडी इस मिलन की
है आबिद का सेहरा दुआएं बशन की
करम पंजतन का अता पंजतन की

लो ज़ेहरा खतीजा भी सज धज के आई
तो बेटों ने भी इनके रौनक लगाई
सजी सारा देखो नवाज़िश किरन की
है आबिद का सेहरा दुआएं बशन की
करम पंजतन का अता पंजतन की

बतूल और मरियम भी सज धज के आई
अली और असग़र ने रौनक बढ़ाई
लो सज्जाद महके हैं अफ्शां जो खन की
है आबिद का सेहरा दुआएं बशन की
करम पंजतन का अता पंजतन की

ये इमरान रिज़वान और सारे बच्चे
सितारों से भी आज लगते हैं अच्छे
है आँगन में आरिफ के रौनक गगन की
है आबिद का सेहरा दुआएं बशन की
करम पंजतन का अता पंजतन की

Khadi Ho Kandhe Se Kandha Milaye Zainab Se

बक़ाए मक़सद ए शब्बीर में रहीं शामिल
तुम्हारे लफ्ज़ भी आगे ना आए ज़ैनब से

फ़ज़ीलतों में फ़ज़ीलत जुदा ये है कुलसूम
खड़ी हो काँधे से काँधा मिलाए ज़ैनब से

Jafar Hai Naam Aapko Sadiq Laqb Mila

हर जशने सादिक़ ऐन में ये भी अजब मिला
जो शख्स भी मिला वो हमें बा अदब मिला

उल्फत खुदा की दीन भी दुनिया का इल्म भी
बाक़िर के लाल आपके दर से ये सब मिला

इल्मो अमल में आप का सानी कोई नहीं
जाफर है नाम आपको सादिक़ लक़ब मिला

इस दर पे मांगने की ज़रूरत नहीं पड़ी
जो आ गया यहाँ पे उसे बे तलब मिला

मुनकिर जो इनके दर का मिले उस से पूछना
कितना मिला कहाँ से मिला और कब मिला

मिदहत ज़ुहैर इनकी बराए सवाब कर
सदक़ा है इनके दर का तुम्हें खुश लक़ब मिला

Ya Nabi Ya Nabi Ya Nabi Ya Nabi

या नबी या नबी या नबी या नबी
या नबी या नबी या नबी या नबी
या नबी या नबी या नबी या नबी
या नबी या नबी या नबी या नबी

ये फलक ये ज़मीं चाँद सूरज सभी
ये समंदर ये तारों में सब रौशनी
सारी दुनिया तुम्हारे लिए है सजी
या नबी या नबी या नबी या नबी

आके दुनिया में रौशन जहाँ कर दिया
खाली दामन जो था इल्म से भर दिया
तुम जो आये तो पहचान रब की हुई
या नबी या नबी या नबी या नबी

कोई छोटा नहीं ना कोई है बड़ा
सबसे आला है कोई तो वो है खुदा
तुमसे सीखी तो आयी हमें बंदगी
या नबी या नबी या नबी या नबी

तुमको ताहा कहा और यासीन भी
मिलने तुमको बुलाया वो मेराज दी
फातिमा जैसी बेटी भी तुमको मिली
या नबी या नबी या नबी या नबी

एक इशारे से जिसने क़मर दो किया
उसको लोगो ने अपने ही जैसा कहा
कौन कर पायेगा आपकी हमसरी
या नबी या नबी या नबी या नबी

कितनी मोजिज़ नुमा आपकी ज़ात है
मुँह है छोटा ज़ुहैर और बड़ी बात है
मैं कहाँ और कहाँ आपकी नौकरी
या नबी या नबी या नबी या नबी

Ya Ali Ya Ali Ya Ali Ya Ali – Khaybar

या अली या अली या अली या अली
या अली या अली या अली या अली
या अली या अली या अली या अली

मेरा मौला अली मेरा आक़ा अली
आसमानो ज़मीं पर हुकूमत तेरी
दिन तेरी रौशनी रात मर्ज़ी तेरी
हर सितारों ने की है तेरी नौकरी
तेर सदक़े में नबियों की मुश्किल टली
या अली या अली या अली या अली

मैंने खैबर से जब पूँछा ये माजरा
जंग में क्या हुआ कुछ बता तो ज़रा
जब ना थे मुर्तज़ा तो लड़ा कौन था
इतने दिन क्यों लगे क्यों फतह ना हुआ
किसको खैबर में अहमद ने आवाज़ दी
या अली या अली या अली या अली

बोला खैबर के अल मुख़्तसर यूँ हुआ
जंगे का सारा नक़्शा था पलटा हुआ
लड़ने मरहब से कोई भी जाता ना था
लड़ने जाता था कोई तो टिकता ना था
एक भी तो ना था सब में कोई जरी
या अली या अली या अली या अली

सूरमा सब बने मात खाते रहे
झंडे जाते रहे डंडे आते रहे
मात खाते रहे मुँह छुपाते रहे
अपनी ना कामियां सब सुनाते रहे
मर्दे मैदाँ तो उनमे ना निकला कोई
या अली या अली या अली या अली

कितने असहाब थे सब बड़े से बड़े
सबसे आगे थे वो जो ससुर भी हुए
लड़ने वो भी गए थे बड़ी शान से
पहुँचे थे शान से पलटे हैरान से
बे ज़ुबाँ को सुनाने लगे जो खरी
या अली या अली या अली या अली

कितने हज़रात का आना जाना हुआ
ख़त्म हर एक का हर बहाना हुआ
दिन गुज़रते रहे एक ज़माना हुआ
पर खुदा ने था कुछ और ठाना हुआ
आए जिब्रील ले कर वहीं पर वही
या अली या अली या अली या अली

बोले अहमद अलम अब मैं दूँगा उसे
गैर ए फर्रार हो जीत हासिल करे
कितने अलक़ाब थे जो नबी ने कहे
एक लक़ब में भी हमसर ना छोटे बड़े
दिन वो ढलने लगा रात होने लगी
या अली या अली या अली या अली

उफ़ अलम की वो चाहत थी असहाब में
नींद सबकी उडी थी अलम के लियें
नींद कैसी खुली आँखों से खाब में
सोचते थे अलम कल मिलेगा हमें
सोचते सोचते ही सुबह हो गयी
या अली या अली या अली या अली

दिन जो निकला अज़ाने सहर जो हुई
तेज़ धड़कन जो थी तेज़ तर हो गयीं
हम को देंगे अलम बस गुमां था यही
जिस से डरते थे आखिर हुआ फिर वही
मुस्तफा ने पढ़ी फिर जो नादे अली
या अली या अली या अली या अली

वो सदा सुन के बे साख्ता आ गए
जंग लड़ने को मुश्किल कुशा आ गए
जबके बीमार थे मुर्तज़ा आ गए
थे मदीने में पेशे नबी आ गए
गर बुलाये नबी क्यों ना आये वसी
या अली या अली या अली या अली

नाम हैदर का जूं ही नबी ने लिया
जाने कितनो का चेहरा ही मुरझा गया
दिल की हर एक तमन्ना का खूं बह गया
जागना रात भर सब अकारत गया
थी अलम की जो चाहत यूँ ही रह गयी
या अली या अली या अली या अली

लड़ने मरहब से तनहा अली जो गए
सीना पत्थर का चीरा अलम के लिए
बोले हिम्मत हो जिसमें वो आके लड़े
जितने असहाब थे देखते रह गए
एक मरहब की दो लाश कैसे हुई
या अली या अली या अली या अली

एक इशारा अली ने जो दर को किया
दर जो चालीस लोगों से हिलता ना था
ए ज़ुहैर उस इशारे का था मोजिज़ा
दर वो दस्ते दरे इल्म पर आ गया
फिर तो माले गनीमत था और फ़ौज थी
या अली या अली या अली या अली

Matam Ke Roz Khatm Hue Eid Aa Gayi – Eid-e-Zehra

मातम के रोज़ ख़त्म हुए ईद आ गयी
हर मातमी के चेहरे पे मुस्कान छा गयी

तारीकयों से कह दो कहीं और जा बसें
सज्जाद मुस्कुरा दिए रौनक सी आ गयी

लहजे में मुर्तज़ा के जो खुत्बा सुना गयी
फ़र्शे अज़ा यज़ीद के घर में बिछा गयी

बेटी अली की क़स्रे खलीफा गिरा गयी
औक़ात क्या है ज़ुल्म की सबको दिखा गयी

शोले दबा के शाम के ज़िन्दाँ जो आयी थी
क़स्रे यज़ीद सारा का सारा जला गयी

नारा अली का नस्लों का है आइना ए शेख
माथे की एक शिकन कई सदियां दिखा गयी

अजदाद जिनके ग़ार में रोए थे दोस्तों
ज़हरा की ईद आई तो उनको रुला गयी

अम्मा पुकारता है ज़माना उसे ज़ुहैर
जंगे जमल में लड़ने अली से जो आ गयी

Aza-e-Shah ko hi bas apna ham safar rakhna

अज़ा ए शह को ही बस अपना हम सफर रखना
नजफ़ से हो जो शुरू ऐसी रह गुज़र रखना

सलाम करना शहीदों को और असीरों को
सफर में अपने क़दम तुम जिधर जिधर रखना

सफर हो हुज्जते आखिर के साथ में अपना
इलाही मेरी दुआओं में वो असर रखना

सना जो करना हो अब्बास की तो याद रहे
तुम अपने ज़ेर भी अशआर में ज़बर रखना

हो जब भी ज़िक्र कहीं प्यास का मुसीबत का
तो खुल के रोने रुलाने में ना कसर रखना

सकीना कहती थी जब शाहे दीं चले रन को
हुई जो शाम तो बाबा मेरी खबर रखना

कहा ये शह ने सकीना कटेगा सर मेरा
पड़ा मिले मेरा लाशा तो अपना सर रखना

जलेगा आग से दामन तेरा मेरी दिलबर
जो छीने बालियाँ कोई तो तुम सबर रखना

ज़ुहैर तुमको ज़माना अगर सताने लगे
असीरे शाम की ग़ुरबत पा भी नज़र रखना

Amal Se Kab Wahan Kirdaar Samjha Ja raha hai

अमल से कब वहाँ किरदार समझा जा रहा है
रहज़नो को जहाँ सरदार समझा जा रहा है

नहीं मालूम जिसका हुर है या वो हुरमुला है
भला कैसे वो मातमदार समझा जा रहा है

खुद अपनी कोम को जाहिल दिखा कर सबके आगे
खुद अपने आप को हुशियार समझा जा रहा है

ज़रा सी मालो दौलत और इनकी चापलूसी
ख़याल ए खाम भी हथियार समझा जा रहा है

मेरे माबूद आखिर कब तमाशा ख़त्म होगा
अज़ादारी है क्यों त्योहार समझा जा रहा है

तमाशा करने वालों को खबर दे दो ज़ुहैर अब
ये ना समझें उन्हें दम दार समझा जा रहा है