ना ज़मीं परदे में है ना आसमां परदे में है
फिर भी क्यों लगता है जैसे के जहाँ परदे में है
या इलाही ग़ैब की मुद्दत को अब तो ख़त्म कर
फूल मसले जा रहे हैं बाग़बां परदे में है
किस क़दर बख़शे हैं रब ने देखिए अपने सिफ़ात
आशिकों से रु बा रु भी और निहां परदे में है
उगता सूरज रोज़ देता है मिसाल इनकी हमें
नूर है फैला जहाँ में जिस्मों जां परदे में है
साज़िशों में घिर ना जाये मातमी बच्चे कहीं
ज़हर सुलगा है फ़िज़ा में और धुआं परदे में है
क्या कहें किस से कहें कैसे कहें हद पार है
जिसको रहना चाहिए अब वो कहाँ परदे में है
अब जो मिदहत है तो बस शोरो गुलूकारी से है
शायरी तो आज कल सारी मियां परदे में है
जो अता मुझको हुआ वो लिख दिया मैंने ज़ुहैर
है हकीकत सामने वहमों गुमां परदे में है