ए खुदा जिस पा तेरी ख़ास नज़र हो जाए
संग रेज़े से वो नायाब गोहर हो जाए
आयी जो तेरा रजब हस के ये काबे ने कहा
आज लाज़िम है के दीवार मैं दर हो जाये
रास्ता हक़ को बताएगी दुआ अहमद की
हो अली जिस भी तरफ हक़ भी उधर हो जाए
जबके ईमान हलाकत के सबब लाया हो
क्या हो वो शख्स खलीफा भी अगर हो जाए
ग़ैर मुमकिन है अज़ाबों में कमी आएगी
जा के फिर दफ़्न भले चाहे जिधर हो जाए
दार से मीसमे तम्मार सदा देने लगे
ये ज़बां क्या है फ़िदा जानो जिगर हो जाए
मन्क़बत ऐसी हो मौला को पसंद आए ज़ुहैर
मेरे अलफ़ाज़ में बस इतना असर हो जाए