मेराज पर जो ताइर ए फिकरे रसा गया
तब लौहे दिल पे नामे मुहम्मद लिखा गया
कौसर रसूल अर्श अली की विलायतें
यकजा लिखे तो फातिमा ज़ेहरा पढ़ा गया
अल्लाह ने बुला के अता की रसूल को
बेटी वो जिसको उम्मे अबीहा कहा गया
बेटी नबी की एक फ़क़त फातिमा ही थीं
खुलके नबी को बाप का रिश्ता दिया गया
असहाब सारे छत से नज़ारे में गुम रहे
उतरा सितारा रिश्ता दिया और चला गया
गर जानना है कौन भला अहले बैत हैं
ये देखो कौन कौन ही ज़ेरे किसा गया
रोज़ा नमाज़ हज ये मुकम्मल हुए हैं कब
जब हाजियों को रोक के मौला दिया गया
जिसने नबी की बेटी का घर तक जला दिया
सद हैफ़ ये के उसको खलीफा कहा गया
ये मन्क़बत सलाम ये अश्के अज़ा ज़ुहैर
था मुख्तसर लहद में बड़े काम आ गया