Labon pe Apne Sajaya hai naam Baqir ka

लबों पे अपने सजाया है नाम बाक़िर का
है मुझको नाज़ के मैं हूँ ग़ुलाम बाक़िर का

इमाम पांचवे है कर्बला के क़ैदी भी
ज़माना इस लिए भी है ग़ुलाम बाक़िर का

Khuli jo Aankh to Phele Khuda ka Ghar Dekha

ज़माना झूम रहा था जहाँ जिधर देखा
खुदा के घर में जो इमरान का पिसर देखा

रजब की तेरा को बिन्ते असद ने काबे में
अली के इश्क़ में बनते हुआ वो दर देखा

जिदार टूट रही थी खड़ी थी बिन्ते असद
ज़माने भर की किसी माँ का ये जिगर देखा

बुतों की भीड़ थी काबे में जब अली आये
ना कुछ सुनाया अली ने ना एक नज़र देखा

वसी को अपने जो लेने को मुस्तफा आये
जो खोली आँख रुखे सय्यदुल बशर देखा

जब एक जा मिले शम्सो कमर तो काबे में
ज़माने भर के खुदा थे तितर बितर देखा

उन्हीं खुदाओं की अब तक भी याद दिल में लिए
नमाज़ में भी किसी ने इधर उधर देखा

सुबह हुई तो अली थे नबी नहीं थे वहां
मुनाफिकों ने वो बिस्तर तो रात भर देखा

नबी की क़ब्र को जिस जिस ने घेर रख्खा है
उसी की आल को दुनिया में दर बदर देखा

Aaj Lazim Hai Ke Deewaar Main Dar Ho Jaye

ए खुदा जिस पा तेरी ख़ास नज़र हो जाए
संग रेज़े से वो नायाब गोहर हो जाए

आयी जो तेरा रजब हस के ये काबे ने कहा
आज लाज़िम है के दीवार मैं दर हो जाये

रास्ता हक़ को बताएगी दुआ अहमद की
हो अली जिस भी तरफ हक़ भी उधर हो जाए

जबके ईमान हलाकत के सबब लाया हो
क्या हो वो शख्स खलीफा भी अगर हो जाए

ग़ैर मुमकिन है अज़ाबों में कमी आएगी
जा के फिर दफ़्न भले चाहे जिधर हो जाए

दार से मीसमे तम्मार सदा देने लगे
ये ज़बां क्या है फ़िदा जानो जिगर हो जाए

मन्क़बत ऐसी हो मौला को पसंद आए ज़ुहैर
मेरे अलफ़ाज़ में बस इतना असर हो जाए

Daste Shabbeer pe maidan ko chala hai besheer

सिर्फ छह माह में तू कितना बड़ा है बेशीर
सर उठाए ये फलक देख रहा है बेशीर

खूब मालूम है झूला भी वो अजदर भी इसे
हुरमुला खौफ से यूँ काँप रहा है बेशीर

ए ज़मीं आसमां बस क़ल्ब पे काबू रखना
दस्ते शब्बीर पे मैदां को चला है बेशीर

लड़ने आता तो क़यामत सरे मैदान आती
मुस्कुरा कर ही अभी देख रहा है बेशीर

लाश बैयत की गिरी रन में जो आशूर के दिन
रो दिया लश्करे कुफ्फार हसा है बेशीर

कमसिनी मैं भी शरीअत के मुहाफ़िज़ हो तुम
तुम हसे हो तो ये इस्लाम बचा है बेशीर

शान में उसको ये गुलदस्ता बना लाया ज़ुहैर
तेरी मिदहत में जो कुछ इसने लिखा है बेशीर

Saji Dulhan Bani Rabiya Hamari

सजी दुल्हन बानी राबिया हमारी
दुल्हन के रूप में लगती है प्यारी

कहा फरमान ने ये सलेहा से
बड़ी कब हो गयी बेटी हमारी

ये रख कर हाथ सर पे बोली बानो
खुदा आबाद रख्खे तुमको प्यारी

यही इक़बाल नजमी की दुआ है
जहाँ मैं सारी खुशियां हों तुम्हारी

अरीब आबान गुफरान और लारैब
सभी डोली उठाएंगे तुम्हारी

क़ुरआन के साये में अफ्ज़लो जेबी
करेंगे डोली को रुखसत तुम्हारी

तेरे मामू मुमानी और नानी
दुआएं दे रहे हैं तुमको प्यारी

शमीमा और नकहत कह रहीं हैं
नज़र लग जाये ना तुमको हमारी

जियो फूलो फलो बोली हसीना
नज़र फूलों से बबली ने उतारी

मुदस्सिर और अतिया ने कहा ये
कमी खुशियों में ना आये तुम्हारी

बनीन अरमान हमजा और क़म्बर
सभी को याद आएगी तुम्हारी

वफादार और सलाम की दुआएं
जिए फूले फले राबिया हमारी

तेरी खाला जो पूना से है आई
दुआएं साथ लायी ढेर सारी

हुसैन अबीहा हो ज़ैनब या के फ़िज़्ज़ा
किसी को भूल ना पाओगी प्यारी

अनम उबूर असमा सारी बहने
करेंगी याद सब बातें तुम्हारी

Dulhan Lene Chale Abbas Haadi

दुल्हन लेने चले अब्बास हादी
सजे दूल्हा बने अब्बास हादी

कहा याज़्दान ने सेहरा ये सुन लो
हमारे आज मामू की है शादी
सजे दूल्हा बने अब्बास हादी

बरीनो बीनिशों सकीना और सुकैना
गली इन सब ने फूलों से सजा दी
सजे दूल्हा बने अब्बास हादी

बनी मासूमा और खुशबू जो समधन
चली बारात तो वो मुस्कुरा दी
दुल्हन लेने चले अब्बास हादी

बालाएं ले के नानी ने कहा ये
सदा फूलो फलो अब्बास हादी
दुल्हन लेने चले अब्बास हादी

सुना सेहरा तो फिर सब मुस्कुराए
लो फिर दानिश ने ढोलक भी बजा दी
सजे दूल्हा बने अब्बास हादी

मेरी खलाओं ने अम्मा ने मिलकर
सभी ने आज रौनक सी लगा दी
दुल्हन लेने चले अब्बास हादी

हमारे नाना नानी जच रहे है
सजे हैं ऐसे के उनकी है शादी
दुल्हन लेने चले अब्बास हादी

Husla Haider e Karrar se lekar Iran

حوصلہ حیدر کررار سے لے کر ایران
کیا بھلا وار وو اس پار نہیں کر سکتا

جیتنا جنگ تیرے بس میں نہیں ہے ظالم
تو تو ایک وار بھی بیکار نہیں کر سکتا

Khuda ke ghar se Ali ke dar se…

ہماری نسلوں میں ہے محبّت خدا کے گھر سے علی کے در سے
ہمیں ملی ہے جہاں میں فرحت خدا کے گھر سے علی کے در سے

ہم ہی نے پاے رسول اکرم ہم ہی کو بارہ ملے ہیں رہبر
اذان جیسے ہے پھر اقامت خدا کے گھر سے علی کے در سے

ہے خوش نصیبی جو ہم نے پائی غدیر خم اور عزا سرور
ہےایک نعمت تو ایک عبادت خدا کے گھر سے علی در سے

ہوئی ہے صدیاں مٹا نا پاے ابھی تلک بھی نشان آمد
ہے شیخ جی کو عجیب دقّت خدا کے گھر سے علی کے در سے

امام حق ایگا یہیں سے علم و لہراۓ گا یہیں پر
اٹھے گا پردہ کھلے گی غیبت خدا کے گھر سے علی کے در سے

یہ بولے میثم زبان میری کٹی تو کوئی بھی غم نہیں ہے
ہوئی ہے لبریز میری چاہت خدا کے گھر سے علی کے در سے

اتر کے تارا بتا رہا ہے نبی سے رشتے کا معملا ہے
فقط بتانی ہے مجھکو نسبت خدا کے گھر سے علی کے در سے

سلام عظمت پا شہزادی تیرے وسیلے کا موجزا ہے
جو مل رہی ہے ہر ایک حاجت خدا کے گھر سے علی کے در سے

عزا شاہ میں لوٹا رہے ہیں پھراور زیادہ بھی پا رہے ہیں
ہے رزق و روزی میں اپنے برکت خدا کے گھر سے علی کے در سے

کسی نے تو حق علی چھینا کسی نے آ کر و در جلایا
ہوئی ہے کس پر بتاؤ لعنت خدا کے گھر سے علی کے در سے

ظہیر مدحت کا معجزہ ہے یہ تری ماں کی دعا یں بھی ہیں
جہاں بھر میں ملی ہے اذّت خدا کے گھر سے علی کے در سے